Mirzapur news :- [ब्यूरो चीफ तारा त्रिपाठी] मिर्ज़ापुर में 11 अप्रैल को शिक्षा के बाज़ारीकरण और निजी विद्यालयों की मनमानी के विरोध में एक ज़बरदस्त जनआंदोलन देखने को मिला। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री श्री अजय राय के आह्वान पर, जिला कांग्रेस कमेटी मिर्ज़ापुर के अध्यक्ष डॉ. शिव कुमार पटेल के नेतृत्व में यह धरना-प्रदर्शन मिर्जापुर जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष आयोजित किया गया।
डॉ. शिव कुमार पटेल ने स्पष्ट रूप से कहा कि आज देश में शिक्षा को सेवा नहीं बल्कि व्यापार बना दिया गया है। एक तरफ जहां महंगाई चरम पर है और आम नागरिक अपने परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर निजी स्कूलों द्वारा फीस में बेहिसाब बढ़ोत्तरी करके आम जनता को लूटा जा रहा है। सिर्फ फीस ही नहीं, स्कूलों द्वारा किताबें, कॉपियाँ, यूनिफॉर्म तक निर्धारित दुकानों से अत्यधिक दामों पर खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि यह न केवल एक सामाजिक अन्याय है, बल्कि एक सुनियोजित आर्थिक शोषण भी है, जो सीधे-सीधे माता-पिता और अभिभावकों पर बोझ बढ़ाता है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी इस अन्याय के खिलाफ खड़ी है और मांग करती है कि निजी विद्यालयों की इस मनमानी पर तुरंत रोक लगाई जाए।
धरना स्थल पर बड़ी संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता और स्थानीय नागरिक मौजूद रहे। इसमें उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य एवं मीडिया प्रभारी छोटे खान, गुलाबचंद पांडे, चुनमुन शुक्ला, सुधाकर चमार, शशिभूषण दुबे ‘पथिक’, राजधर दुबे, इंजीनियर कृष्ण गोपाल चौधरी, तुलसीदास गुप्ता, रामलखन भारती, रमेश प्रजापति, पप्पू इश्तियाक अंसारी, राजेंद्र विश्वकर्मा, कपिल कुमार सोनकर, आदित्य गुप्ता, राजेश पटेल, अंशु पांडे, युवा कांग्रेस के जिला अध्यक्ष मोहित मिश्रा सहित सैकड़ों कार्यकर्ता शामिल रहे।
धरना-प्रदर्शन के दौरान नेताओं ने सरकार से यह भी मांग की कि शिक्षा को व्यापार से मुक्त किया जाए और निजी स्कूलों के लिए स्पष्ट और कठोर दिशानिर्देश जारी किए जाएं ताकि अभिभावकों का शोषण रोका जा सके।
कार्यक्रम का समापन एक आवाज़ के साथ हुआ—“शिक्षा अधिकार है, व्यापार नहीं!” यह नारा न सिर्फ भीड़ में गूंजा, बल्कि हर अभिभावक के दिल की आवाज़ बन गया। कांग्रेस पार्टी ने यह भी चेतावनी दी कि अगर सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से कार्रवाई नहीं करती है, तो आगे और बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा।
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यह धरना न केवल एक विरोध था, बल्कि शिक्षा की पवित्रता को बचाने की एक पहल थी। यह आंदोलन आने वाले समय में जनमानस के समर्थन से एक नई दिशा और मजबूती पा सकता है।