Aaiyye jante hai hme kaisi prathna karni chahie….
– प्रार्थना में कभी माँग न उठे, कोई अपेक्षा न हो।
– प्रार्थना में अहोभाव प्रकट हो, चित्त धन्यवाद से भरा हो।
– जो परमात्मा से मिला है, जो उसने दिया है, वह अभी भी निरंतर दे ही रहा है, उसके लिए उसे धन्यवाद दें, अहोभाव प्रकट करे, अनुग्रह का भाव प्रकट करें।
– यदि प्रार्थना में अनुकम्पा का भाव प्रकट • करेंगे तो उदासी कभी नहीं घेरेगी, अपितु चित्त प्रसन्नता से भरा रहेगा। जो बंद द्वार है, वे भी खुलने लगेंगे। और यदि अपेक्षा होगी तो जो द्वार खुले थे, वे भी बन्द होने लगेंगे ।
– परमात्मा निरपेक्ष है, उसकी हमसे कोई अपेक्षा नही है।
– चाहे प्रार्थना में अहोभाव प्रकट करें या भीख माँगे, चाहे उनकी स्तुति करें या न करें, उनकी कोई चाह नहीं है।
• चाहे पाप करें या पुण्य करें, वे हर स्थिति में सहयोग ही करते हैं, चुनाव हमारा है कि हम पाप चुनते है या पुण्य ।
– प्रार्थना में कभी माँग न उठे, कोई अपेक्षा न हो।
– प्रार्थना में अहोभाव प्रकट हो, चित्त धन्यवाद से भरा हो।
– जो परमात्मा से मिला है, जो उसने दिया है, वह अभी भी निरंतर दे ही रहा है, उसके लिए उसे धन्यवाद दें, अहोभाव प्रकट करे, अनुग्रह का भाव प्रकट करें।
– यदि प्रार्थना में अनुकम्पा का भाव प्रकट • करेंगे तो उदासी कभी नहीं घेरेगी, अपितु चित्त प्रसन्नता से भरा रहेगा। जो बंद द्वार है, वे भी खुलने लगेंगे। और यदि अपेक्षा होगी तो जो द्वार खुले थे, वे भी बन्द होने लगेंगे ।
– परमात्मा निरपेक्ष है, उसकी हमसे कोई अपेक्षा नही है।
– चाहे प्रार्थना में अहोभाव प्रकट करें या भीख माँगे, चाहे उनकी स्तुति करें या न करें, उनकी कोई चाह नहीं है।
• चाहे पाप करें या पुण्य करें, वे हर स्थिति में सहयोग ही करते हैं, चुनाव हमारा है कि हम पाप चुनते है या पुण्य ।