Vijayadashmi 2024:- पौराणिक कथाओं में भगवान श्री राम की पसंदीदा मिठाई शशकुली थी, जिसे आज जलेबी के नाम से जाना जाता है। राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद जलेबी खाकर अपनी जीत का जश्न मनाया था, जिससे इस मिठाई का महत्व और भी बढ़ गया।
दशहरे पर जलेबी खाने की परंपरा के पीछे एक खास सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यता जुड़ी हुई है। दशहरा बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है, और इस दिन रावण पर भगवान राम की जीत का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन जलेबी खाने की परंपरा कुछ विशेष कारणों से विकसित हुई है:
1. मीठा प्रतीक जीत का: भारतीय संस्कृति में किसी भी शुभ कार्य या विजय के बाद मिठाई बांटने और खाने की परंपरा है। दशहरे पर, जब बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाया जाता है, तो मिठाई के रूप में जलेबी खाई जाती है। इसका मकसद जीत की खुशी को मीठे से मनाना होता है।
2. शक्ति और समृद्धि का प्रतीक: जलेबी, गोल और गहरे रंग की होती है, जो शक्ति और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है। इसे खाकर शक्ति और ऊर्जा प्राप्त करने की मान्यता है।
3. लोकप्रिय मिठाई: जलेबी भारत में प्राचीन काल से एक लोकप्रिय मिठाई रही है। इसका सेवन हर उत्सव में किया जाता है, चाहे वह शादी हो, त्योहार हो या विजय का जश्न। दशहरे पर भी इसका सेवन इसी कारण से होता है, क्योंकि यह हर वर्ग के लोगों द्वारा पसंद की जाती है।
4. धार्मिक मान्यता: कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम के अयोध्या लौटने पर उनके स्वागत में मिठाई बांटी गई थी, जिसमें जलेबी भी शामिल थी। इस वजह से दशहरे पर जलेबी खाने की परंपरा बन गई।
Ni5. सामाजिक जुड़ाव: दशहरा मेलों और कार्यक्रमों में जलेबी खाने का एक सामाजिक पहलू भी होता है। लोग मेला घूमने जाते हैं, और वहां जलेबी का आनंद लेते हैं। इससे एकता और सामूहिकता की भावना बढ़ती है।
इस प्रकार, दशहरे पर जलेबी खाना धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है, जो इस पर्व की मिठास और विजय के जश्न को और भी खास बना देता है।
Author: Suryodaya Samachar
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