Satsang importance :- एक बार कबीरजी के पास एक जिज्ञासु व्यक्ति आया। उसने प्रश्न किया, “गुरुदेव, हमें रोज-रोज सत्संग क्यों सुनना चाहिए? एक ही बात बार-बार सुनने का क्या लाभ? अगर हमने किसी विषय को एक बार समझ लिया है, तो उसे बार-बार सुनने की आवश्यकता क्यों है?”
कबीरजी मुस्कराए और कुछ नहीं बोले। उन्होंने पास रखे एक हथौड़े को उठाया और दीवार में एक कील ठोक दी। अगले दिन जब वह व्यक्ति फिर आया और वही प्रश्न दोहराया, तो कबीरजी ने उसी कील पर फिर से हथौड़े से प्रहार किया। ऐसा रोज होता रहा। पांचवें दिन वह व्यक्ति झुंझलाकर बोला, “गुरुदेव, मैं आपसे बार-बार एक ही सवाल पूछ रहा हूं, और आप हर बार उसी कील पर प्रहार करते हैं। आखिर इसका क्या अर्थ है?”
कबीरजी शांत स्वर में बोले, “वत्स, यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। जैसे यह कील दीवार में एक बार ठोकने से पूरी तरह नहीं धंसती, इसे बार-बार प्रहार करने से गहराई मिलती है। ठीक वैसे ही मनुष्य का मन, जो संसार की आसक्ति और विकारों से भरा है, वह ईश्वर में स्थिर होने के लिए बार-बार सत्संग रूपी प्रहार की आवश्यकता रखता है। एक बार सत्संग सुनने से मन गहराई में नहीं उतरता, उसे बार-बार सजग करना पड़ता है।”
सत्संग की आधी घड़ी, सुमिरन बरस पचास ।
वर्षा वर्षे एक घड़ी, अरहट फिरे बारहों मास
कबीरजी आगे बोले, “सत्संग मन को शुद्ध करता है, लेकिन मन बार-बार विचलित होता है। इसे बार-बार भगवान् की ओर मोड़ने के लिए सत्संग की आवश्यकता होती है। सत्संग का अर्थ केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं, बल्कि उसे अपने जीवन में गहराई से उतारना है। जब तक यह कील पूरी तरह ठहर न जाए, तब तक प्रहार जरूरी है।”
इस गूढ़ उपदेश को सुनकर व्यक्ति ने सिर झुकाया और कहा, “गुरुदेव, मैं समझ गया। अब मैं प्रतिदिन सत्संग सुनूंगा और अपने मन को ईश्वर में स्थिर करने का प्रयास करूंगा।”
सार:
सत्संग बार-बार इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह हमारे चंचल मन को बार-बार ईश्वर की ओर मोड़ता है और जीवन में आध्यात्मिक गहराई लाता है।
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Author: Suryodaya Samachar
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