मणिकर्णिका घाट की 300 साल पुरानी ऐतिहासिक रामलीला :- [रिपोर्टर सुजीत सिंह वाराणसी वाराणसी के मणिकर्णिका घाट की 300 साल पुरानी ऐतिहासिक रामलीला का आयोजन सदियों से धार्मिक श्रद्धा और उत्साह के साथ किया जाता रहा है। यह रामलीला अपने आप में अद्वितीय है, और इसे देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु हर साल भारी संख्या में यहाँ आते हैं। इस रामलीला के प्रसंग, विशेष रूप से “सीता स्वयंवर” और “शिव धनुष भंग,” को लेकर स्थानीय लोग और भक्तों में जबरदस्त उत्साह रहता है।
सीता स्वयंवर का मंचन: इस साल भी रामलीला में सीता स्वयंवर का अद्भुत और भावपूर्ण मंचन किया गया। मणिकर्णिका घाट पर आयोजित इस लीला के दौरान प्रभु श्रीराम ने शिव का पिनाक धनुष तोड़ा और माता सीता से विवाह किया। यह दृश्य भक्तों के लिए एक आस्था और भक्ति का केंद्र बिंदु था। जैसे ही प्रभु श्रीराम ने शिव धनुष तोड़ा, पूरे घाट पर “जय श्रीराम” के नारों से वातावरण गूंज उठा। यह अलौकिक क्षण सभी श्रद्धालुओं के दिलों में गहरे तक उतर गया और समूचा माहौल एक भक्तिमय उत्सव में बदल गया।
शिव धनुष भंग का दृश्य: शिव धनुष का टूटना रामायण के सबसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक प्रसंगों में से एक है। जब जनकपुर में राजा जनक ने सीता स्वयंवर का आयोजन किया था, तब उन्होंने यह शर्त रखी थी कि जो भी वीर शिव का धनुष तोड़ सकेगा, वही उनकी पुत्री सीता से विवाह कर सकेगा। यह शर्त सुनकर अनेकों राजाओं और वीरों ने प्रयास किया, लेकिन कोई भी शिव धनुष को हिला भी नहीं पाया। अंततः जब प्रभु श्रीराम ने धनुष उठाया, तो उन्होंने उसे एक ही झटके में तोड़ दिया।
यह क्षण न केवल रामायण में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाता है, बल्कि भक्तों के लिए भी यह अद्वितीय भावनाओं से भरा होता है। मणिकर्णिका घाट की रामलीला में इस दृश्य को देखना एक विशेष अनुभव होता है। जैसे ही राम ने धनुष तोड़ा, घाट पर उपस्थित श्रद्धालुओं की आँखों में भक्ति और आनंद का सागर उमड़ पड़ा। हर तरफ से जय श्रीराम के नारों की गूँज सुनाई देने लगी, और सभी श्रद्धालु इस अद्वितीय क्षण का भरपूर आनंद उठाने लगे।
रामलीला का ऐतिहासिक महत्व: मणिकर्णिका घाट की यह रामलीला लगभग 300 साल पुरानी मानी जाती है, और इसका आयोजन हर साल उसी श्रद्धा और उत्साह के साथ किया जाता है। इस रामलीला का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसे घाट पर खुले आसमान के नीचे, गंगा नदी के किनारे, और प्राचीन मंदिरों की पवित्र छाया में किया जाता है। इस स्थान की धार्मिक महत्ता और पवित्रता रामलीला के आयोजन को और भी भव्य और अद्वितीय बना देती है।
इस रामलीला के आयोजन में स्थानीय कलाकारों और रामलीला मंडलियों का विशेष योगदान होता है, जो अपनी भावपूर्ण और सजीव अभिनय के माध्यम से भगवान राम के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं। सीता स्वयंवर, राम-लक्ष्मण की वनगमन की कथा, और रावण-वध के प्रसंगों को यहाँ के कलाकारों ने हमेशा से बड़े ही भावुकता और उत्साह के साथ प्रस्तुत किया है। यह रामलीला केवल एक नाट्य प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह भक्तों के लिए भगवान राम की लीला का जीवंत साक्षात्कार करने का एक माध्यम है।
श्रद्धालुओं का उत्साह और भक्ति: रामलीला के इस आयोजन को देखने के लिए देश-विदेश से लोग वाराणसी आते हैं। घाट पर भगवान राम के धनुष तोड़ने का दृश्य देखने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। जब रामलीला का आयोजन शुरू होता है, तब घाट पर एक विशेष प्रकार की भक्ति और उत्साह का वातावरण छा जाता है। श्रद्धालु अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए ‘जय श्रीराम’ के नारों के साथ इस लीला का हिस्सा बनते हैं।
रामलीला के दौरान केवल भक्तों की भीड़ ही नहीं उमड़ती, बल्कि इस आयोजन में पारंपरिक संगीत, वाद्ययंत्रों, और गीतों का भी अद्भुत संगम होता है। ढोल, नगाड़े, शंख, और बांसुरी की धुनों पर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध होकर रामलीला का आनंद लेते हैं। इस रामलीला का यह आयोजन गंगा के किनारे होने के कारण और भी पवित्र और आस्था से भरपूर हो जाता है। गंगा की शांत धाराओं के बीच रामलीला का आयोजन एक अलौकिक अनुभव प्रदान करता है, जिसे शब्दों में बयां करना कठिन है।
Mission Shakti phase-5 : महिलाओं और बालिकाओं को सुरक्षा और सशक्तिकरण के प्रति जागरूक करने का अभियान – Suryodaya samachar
स्थानीय परंपराओं का सम्मान: मणिकर्णिका घाट की रामलीला न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह वाराणसी की सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस आयोजन में स्थानीय परंपराओं और रीतियों का भी विशेष ध्यान रखा जाता है। हर वर्ष इसे उसी पारंपरिक ढंग से आयोजित किया जाता है, जैसे यह सदियों से होता आया है। इस रामलीला के माध्यम से नई पीढ़ी को भी भगवान राम के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण मूल्यों और धर्म की शिक्षा मिलती है।
समापन: मणिकर्णिका घाट की यह ऐतिहासिक रामलीला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह वाराणसी की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। सीता स्वयंवर और शिव धनुष भंग के प्रसंग का यह मंचन भक्तों के लिए अद्वितीय अनुभव लेकर आता है। भगवान राम की लीला का यह जीवंत रूप हर श्रद्धालु के दिल में भक्ति और प्रेम की भावना को जागृत करता है। इस आयोजन का हिस्सा बनना, अपने आप में एक पवित्र और अद्भुत अनुभव है, जो सभी के लिए स्मरणीय होता है।

Author: Suryodaya Samachar
खबर से पहले आप तक



