Jivitputrika Vrat 2024:– जीवित्पुत्रिका व्रत (जिसे जिउतिया व्रत भी कहा जाता है) मुख्य रूप से उत्तर भारत, खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में मनाया जाता है। यह व्रत माताएं अपने पुत्रों की लंबी आयु, सुरक्षा और समृद्धि के लिए करती हैं। यह व्रत अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है और तीन दिनों तक चलता है।
व्रत की महिमा
जीवित्पुत्रिका व्रत की महिमा इस विश्वास पर आधारित है कि इसे करने से संतान की रक्षा होती है, और वे दीर्घायु और स्वस्थ जीवन प्राप्त करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस व्रत का संबंध महाभारत काल से है, जहां राजा जीमूतवाहन ने एक नाग की जान बचाई थी। उनके इस परोपकार और त्याग से प्रसन्न होकर, उन्हें संतान की दीर्घायु और कुशलता का वरदान प्राप्त हुआ। तभी से यह व्रत पुत्रों की सुरक्षा और सुख-समृद्धि के लिए किया जाने लगा।
कैसे किया जाता है व्रत?
जीवित्पुत्रिका व्रत कठिन नियमों वाला उपवास है, जिसमें माताएं निराहार और निर्जल (बिना खाना और पानी) रहती हैं। इस व्रत को करने के लिए महिलाएं तीन दिन तक विशेष विधि-विधान का पालन करती हैं:
1. पहला दिन (नहाय-खाय): व्रत का पहला दिन ‘नहाय-खाय’ के रूप में जाना जाता है। इस दिन महिलाएं गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करती हैं और शुद्ध भोजन करती हैं। यह दिन पवित्रता और शरीर की शुद्धि का प्रतीक है।
2. दूसरा दिन (निर्जला व्रत): दूसरे दिन यानी अष्टमी तिथि को महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन वे ना भोजन करती हैं और ना ही पानी पीती हैं। वे भगवान जीमूतवाहन और माता पार्वती की पूजा करती हैं, ताकि उनकी संतान को लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन प्राप्त हो।
3. तीसरा दिन (पारण): तीसरे दिन व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय के बाद पूजा करके व्रत खोलती हैं और अन्न-जल ग्रहण करती हैं।
व्रत की विधि
व्रती महिलाएं इस दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं।
घर में पूजा की तैयारी की जाती है, जहां भगवान जीमूतवाहन, माता पार्वती और संतान के चित्र या मूर्ति की पूजा की जाती है।
पूजा के दौरान व्रत कथा सुनने का विशेष महत्व होता है। इसमें जीमूतवाहन की कथा सुनाई जाती है, जो त्याग और परोपकार का प्रतीक है।
इसके बाद महिलाएं अपने पुत्रों के लिए आशीर्वाद मांगती हैं और रातभर जागकर भजन-कीर्तन करती हैं।
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इस व्रत की विशेषता
जीवित्पुत्रिका व्रत माताओं की अपने पुत्रों के प्रति प्रेम और समर्पण को दर्शाता है। यह व्रत धार्मिकता और श्रद्धा के साथ किया जाता है और माना जाता है कि इससे पुत्र दीर्घायु होते हैं और उन्हें जीवन में सफलता मिलती है।
जीवित्पुत्रिका व्रत कब से आरंभ हुआ
यह व्रत जब द्वापर का अंत और कलयुग का आरंभ हुआ था उस समय शोकाकुल स्त्रियां ने आपस में सलाह की क्या माता के जीवित रहते पुत्र मर जायेगे। यह बात गौतम जी के पास पूछने के लिए गई जब उनके पास पहुंची तो गौतम जी आनंद के साथ बैठे थे। सभी स्त्रियां उनसे पूछी कलयुग में लोगों का पुत्र जीवित रहने का कोई व्रत बताए। तब उन्होंने बताया कलयुग में जीमूतवाहन नामक एक राजा थे। पत्नी के साथ ससुराल गए हुए थे वहा पर आधी रात को एक महिला पुत्र के वियोग में रो रही थी। उनका रोना सुनकर राजा जीमूतवाहन का ह्रदय बिदीर्ण हो गया और रोती हुई महिला से पूछे कैसे पुत्र मरा। तब वह माता बोली गांव में गरुड़ महराज ने लड़के को खा लिया है। यह बात जब राजा को मालूम चला तब एक दिन महराज गांव के जिस जगह गरुड़ आते थे, वही पर एक दिन रात में जीमूतवाहन महराज सो गए गरुड़ जी आए और उनके शरीर का बाए अंग को खाया, फिर वह दाहिने अंग को खाने को दिए तब गरुड़ महराज रुक गए उनसे पूछे आप कौन हो मनुष्य तो नहीं लगते हो। तब राजा ने कहा आप इच्छा भर मांस खाओ तब गरुड़ रुक गए राजा से बोले अपने बारे में बताओ तब राजा बोले जीमूतवाहन मेरा नाम है सूर्य वंश में जन्म हुआ है। तब गरुड़ जी बोले आपका अभिलाषा क्या है वर मांगो तब राजा ने बोला आप जितने बालक को आप मार कर खाए है उनको जीवित कर दो ऐसा कोई उपाय बताए जिनका जन्म हो कुछ दिन तक जीवित रहे गरुड़ महराज ने इंद्र लोक जाकर वहां से अमृत लाकर सभी हड्डी पर डाला सभी बालक जीवित हुए इस दिन से जीवित्पुत्रिका व्रत आरंभ हुआ।
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Author: Suryodaya Samachar
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