Breaking news :- बेंगलुरु के 30 वर्षीय अभिषेक एमआर ने पीवीआर सिनेमा, आईनॉक्स और बुकमायशो के खिलाफ उपभोक्ता अदालत में शिकायत दर्ज कराई है। उनका आरोप है कि इन कंपनियों ने फिल्म शुरू होने से पहले 25-30 मिनट तक विज्ञापन दिखाकर न केवल उनका समय बर्बाद किया बल्कि उनके आगे के काम भी प्रभावित हुए। इस वजह से उन्हें मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ा।
क्या है मामला?
अभिषेक ने वर्ष 2023 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘सैम बहादुर’ के लिए तीन टिकट बुक किए थे। उन्हें बताया गया था कि शो का समय 4:05 बजे है और फिल्म 6:30 बजे तक समाप्त हो जाएगी। उन्होंने इस हिसाब से अपने दिन की योजना बनाई थी ताकि फिल्म देखने के बाद अपने अन्य ज़रूरी काम निपटा सकें। लेकिन जब वह थिएटर पहुंचे, तो उन्हें पता चला कि फिल्म 4:05 बजे के बजाय 4:30 बजे शुरू हुई। इसका कारण यह था कि थिएटर में लंबे समय तक विज्ञापन और ट्रेलर दिखाए जा रहे थे।
अभिषेक का कहना है कि यह पूरी तरह से गलत व्यापारिक प्रथा है। उनके अनुसार, सिनेमा हॉल दर्शकों को पहले से तय किए गए समय पर फिल्म दिखाने के लिए बाध्य हैं, लेकिन कंपनियां विज्ञापन दिखाकर अनावश्यक रूप से दर्शकों का समय बर्बाद कर रही हैं।
कानूनी शिकायत और उपभोक्ता अधिकार
अभिषेक ने इस मुद्दे को गंभीर मानते हुए उपभोक्ता अदालत में शिकायत दर्ज कराई। उनका कहना है कि यदि फिल्म का शो टाइम 4:05 बजे तय किया गया है, तो उसे उसी समय शुरू होना चाहिए। इस तरह के अनावश्यक विज्ञापन न केवल समय की बर्बादी हैं, बल्कि यह एक तरह की धोखाधड़ी भी है, जिससे थिएटर कंपनियां विज्ञापनों से अतिरिक्त मुनाफा कमा रही हैं।
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उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि सिनेमा हॉल को इस प्रकार की गतिविधियों से रोका जाए और उन्हें पारदर्शिता बरतने के निर्देश दिए जाएं। यदि कोई दर्शक पहले से तय समय पर फिल्म देखने आता है, तो उसे केवल वही कंटेंट दिखाया जाए जो उसने टिकट खरीदकर देखने के लिए चुना है, न कि आधे घंटे तक विज्ञापन और प्रमोशनल कंटेंट।
क्या होगा इस शिकायत का असर?
यह शिकायत उन हजारों दर्शकों के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकती है जो सिनेमा हॉल में लंबे विज्ञापनों से परेशान होते हैं। यदि उपभोक्ता अदालत इस मामले में अभिषेक के पक्ष में फैसला सुनाती है, तो यह भारत के सिनेमा उद्योग में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। इससे थिएटर मालिकों और टिकट बुकिंग कंपनियों को अपने नियमों में पारदर्शिता लाने और उपभोक्ताओं के अधिकारों का सम्मान करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
अब देखना यह है कि उपभोक्ता अदालत इस मुद्दे पर क्या निर्णय लेती है और क्या यह मामला अन्य दर्शकों को भी अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित करता है।

Author: Suryodaya Samachar
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