Bihar News :- ऑटोमेटेड परमानेंट एकेडमिक अकाउंट रजिस्ट्री, जिसे आमतौर पर अपार पहचान पत्र के नाम से जाना जाता है, वन नेशन, वन स्टूडेंट आईडी की अवधारणा को भी साकार करता है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने इस पहचान पत्र के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू कर दी है। फिलहाल, यह योजना बिहार के सभी सरकारी विद्यालयों में लागू की जा रही है।
बिहार के सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 12 तक के विद्यार्थियों को इस योजना का लाभ लेने की पात्रता है। APAAR पहचान पत्र बनवाने के लिए माता-पिता या अभिभावकों से लिखित सहमति लेना अनिवार्य है। इस पहल का उद्देश्य शैक्षणिक रिकॉर्ड को सुव्यवस्थित करना और छात्रों की पढ़ाई-लिखाई से संबंधित सभी आंकड़ों को एक ही जगह सुरक्षित और सुलभ बनाना है।
इस प्रक्रिया के तहत छात्रों के अभिभावकों को आवश्यक चरणों की जानकारी दी जा रही है। विद्यालयों को निर्देश दिए गए हैं कि वे छात्रों का मार्गदर्शन करें और यह सुनिश्चित करें कि सभी जरूरी दस्तावेज सही तरीके से भरे और जमा किए जाएं।
इस प्रक्रिया में अभिभावकों की सहमति महत्वपूर्ण है। अभिभावकों की अनुमति के बिना, छात्र अपना अपार आईडी कार्ड नहीं बनवा सकते। हालांकि, सहमति पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा है कि यह स्वैच्छिक प्रक्रिया है। लेकिन, कुछ स्थानों से यह शिकायतें सामने आ रही हैं कि छात्रों पर सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करवाने के लिए दबाव डाला जा रहा है।
कुछ छात्रों ने, नाम न छापने की शर्त पर, यह बताया कि विद्यालय के शिक्षक उन्हें सहमति पत्र लाने के लिए अलग-अलग तरीके से मजबूर कर रहे हैं। उन्हें डराया जा रहा है कि अगर सहमति पत्र नहीं लाए तो परीक्षा में फेल कर दिया जाएगा, स्कूल से नाम हटा दिया जाएगा या कोई भी सरकारी लाभ नहीं मिलेगा। सहमति पत्र में जहां साफ लिखा है कि यह अभिभावकों की स्वेच्छा पर आधारित है, वहीं विद्यालय इसे अनिवार्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
इस संदर्भ में, अभिभावकों का कहना है कि अगर यह अनिवार्य है, तो छात्रों से डेटा लेकर सहमति पत्र की आवश्यकता ही क्यों रखी गई? दूसरी ओर, विद्यालय के प्रधानाचार्यों का कहना है कि उन्हें “ऊपर” से आदेश दिया गया है कि सभी छात्रों का अपार आईडी कार्ड बनाना सुनिश्चित करें, चाहे कोई भी तरीका अपनाना पड़े।
यह स्थिति अभिभावकों और छात्रों के बीच असमंजस और दबाव का कारण बन रही है।
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Author: Suryodaya Samachar
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