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Pandit Dindayal Upadhyay :- जानिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि पर योगी जी ने कैसे दी श्रद्धांजलि

Pandit Dindayal Upadhyay:-  पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि, एक प्रेरणादायक स्मरण

पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय राजनीति के उन महान विचारकों में से एक थे, जिन्होंने “एकात्म मानववाद” का दर्शन दिया। उनका संपूर्ण जीवन राष्ट्रनिर्माण, स्वदेशी सोच और भारतीय संस्कृति के उत्थान के लिए समर्पित था। उनकी पुण्यतिथि, 11 फरवरी, हमें उनके विचारों और सिद्धांतों को आत्मसात करने का अवसर प्रदान करती है।

दीनदयाल उपाध्याय: एकात्म मानववाद के प्रणेता

उन्होंने “एकात्म मानववाद” की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसमें समाज के प्रत्येक वर्ग के समग्र विकास की बात की गई। उनका मानना था कि भारत को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहते हुए आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना चाहिए। उनका यह विचार आज भी प्रासंगिक बना हुआ है।

राजनीति में नैतिकता और सेवा का प्रतीक

पंडित उपाध्याय भारतीय जनसंघ (अब भारतीय जनता पार्टी) के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उन्होंने राजनीति को सेवा का माध्यम माना और निष्कलंक जीवन जिया। वे सत्ता की बजाय विचारों की ताकत में विश्वास रखते थे।

रहस्यमयी मृत्यु और एक अमर विचारधारा

10-11 फरवरी, 1968 की रात को मुगलसराय रेलवे स्टेशन (अब दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन) पर उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। हालांकि उनकी मृत्यु आज भी एक रहस्य बनी हुई है, लेकिन उनके विचार और योगदान अमर हैं।

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पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन परिचय

नाम: पंडित दीनदयाल उपाध्याय
जन्म: 25 सितंबर 1916, नगला चंद्रभान, मथुरा, उत्तर प्रदेश
मृत्यु: 11 फरवरी 1968, मुगलसराय (अब दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन), उत्तर प्रदेश
मुख्य योगदान: एकात्म मानववाद के प्रणेता, भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य, राष्ट्रवादी विचारक

प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता का निधन बचपन में ही हो गया, जिसके कारण वे अपने मामा के पास रहने लगे। उन्होंने शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और हाई स्कूल की परीक्षा में गोल्ड मेडल प्राप्त किया। बाद में उन्होंने कानपुर के सनातन धर्म कॉलेज से स्नातक किया और सिविल सेवा परीक्षा भी उत्तीर्ण की, लेकिन देश सेवा के उद्देश्य से नौकरी नहीं की।

राजनीतिक यात्रा

पंडित उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ गए और संगठन के विचारों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1951 में, जब डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की, तो दीनदयाल उपाध्याय को महासचिव बनाया गया। उनकी संगठनात्मक क्षमता के कारण जनसंघ एक मजबूत राजनीतिक दल बना।

एकात्म मानववाद का दर्शन

उन्होंने “एकात्म मानववाद” की अवधारणा प्रस्तुत की, जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं के आधार पर राष्ट्र के समग्र विकास की बात करती है। यह विचारधारा समाज के सभी वर्गों के कल्याण को प्राथमिकता देती है और भारत की सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहने पर बल देती है।

रहस्यमयी मृत्यु

10-11 फरवरी 1968 की रात को मुगलसराय रेलवे स्टेशन (अब दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन) पर उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु आज भी एक रहस्य बनी हुई है, लेकिन उनके विचार और सिद्धांत आज भी देश के विकास की दिशा में मार्गदर्शक बने हुए हैं।

विरासत और योगदान

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन सादगी, निस्वार्थ सेवा और राष्ट्रभक्ति का उदाहरण है। उनके विचार आज भी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक नीतियों को प्रभावित करते हैं। उनकी याद में सरकार ने कई योजनाएँ शुरू की हैं, जैसे कि “दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना” और “दीनदयाल अंत्योदय योजना”

पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय राजनीति को नई दिशा दी और राष्ट्रवादी विचारधारा को मजबूत किया। उनका दर्शन आज भी आत्मनिर्भर भारत और सबके समग्र विकास की प्रेरणा देता है।

आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा

आज, जब भारत आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की राह पर अग्रसर है, पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार हमें सही दिशा दिखाते हैं। उनकी पुण्यतिथि पर हमें उनके सिद्धांतों को अपनाने और राष्ट्र के विकास में योगदान देने का संकल्प लेना चाहिए।

“हर हाथ को काम, हर खेत को पानी” – यही था उनका सपना, और यही हो हमारा संकल्प!”

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Author: Suryodaya Samachar

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