बलराम पूर्णिमा : हिंदू धर्म में भगवान बलराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। भगवान बलराम, भगवान कृष्ण के बड़े भाई थे और उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह पर्व विशेष रूप से श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है, और इसे ‘हल षष्ठी’ या ‘बलराम जयंती’ के नाम से भी जाना जाता है। भगवान बलराम रोहिणी और वासुदेव के पुत्र थे।
बलराम पूर्णिमा का महत्त्व:
1. भगवान बलराम का जन्म: बलराम जी को शेषनाग का अवतार माना जाता है। उनका जन्म भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हुआ था।
2. कृष्ण और बलराम की जोड़ी: भगवान कृष्ण और बलराम की जोड़ी को धर्म और बल का प्रतीक माना जाता है। भगवान बलराम, जिनके पास हल और मुसल जैसे अस्त्र थे, कृषि और शक्ति के प्रतीक माने जाते हैं।
3. धार्मिक महत्व: इस दिन भगवान बलराम की पूजा करने से सुख, समृद्धि और संतुलित जीवन की प्राप्ति होती है।
बलराम पूर्णिमा पर पूजा विधि:
1. स्नान और शुद्धिकरण: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान को शुद्ध जल से साफ करें।
2. प्रतिमा या चित्र: भगवान बलराम की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
3. पूजा सामग्री: भगवान बलराम की पूजा के लिए फल, फूल, धूप, दीपक, पंचामृत, तुलसी के पत्ते और मिठाई का उपयोग करें।
4. प्रसाद अर्पण: भगवान बलराम को दूध, दही, मक्खन, गुड़ और खीर का भोग अर्पित करें।
5. **धूप-दीप:** भगवान बलराम की प्रतिमा के सामने धूप-दीप जलाकर प्रार्थना करें।
बलराम पूर्णिमा पर मंत्र:
भगवान बलराम की पूजा के दौरान निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए:
“`
ॐ बलभद्राय नमः।
ॐ हलधराय नमः।
ॐ बलरामाय नमः।
“`
इस मंत्र का जाप श्रद्धा और विश्वास के साथ करें, जिससे भगवान बलराम की कृपा प्राप्त हो और जीवन में शक्ति, स्थिरता और समृद्धि आए।
बलराम पूर्णिमा के दिन उपवास रखने और पूजा-अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
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