Varuthini Ekadashi vrat katha – वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहते हैं। इस दिन व्रत रखने से मनुष्य को यमराज से भय नहीं रहता और उसे भगवान विष्णु के लोक में स्थान प्राप्त होता है। इस दिन व्रत करने वालों को यह कथा अवश्य पढ़नी चाहिए ताकि व्रत का पूर्ण फल मिल सके।
वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को ‘वरुथिनी’ एकादशी कहा जाता है, जो इस लोक और परलोक दोनों में शुभ फल देने वाली है। इस एकादशी का व्रत करने से सुख की प्राप्ति होती है और पापों का नाश होता है। यह व्रत स्वर्ग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति कराने वाला बताया गया है। वरुथिनी एकादशी का व्रत करके राजा मान्धाता और धुंधुमार जैसे अनेक राजाओं ने स्वर्ग प्राप्त किया था। जो व्यक्ति हजारों वर्षों तक तप करता है, वह जो फल पाता है, वही फल वरुथिनी एकादशी के व्रत से भी प्राप्त किया जा सकता है।
श्रेष्ठ दानों में घोड़े का दान, फिर हाथी का दान, फिर भूमि दान, तिल दान, स्वर्णदान, और अंत में अन्नदान सबसे बड़ा माना गया है, क्योंकि देवता, पितर और मनुष्य सभी अन्न से तृप्त होते हैं। विद्वानों के अनुसार कन्यादान को भी अन्नदान के बराबर पुण्यकारी कहा गया है, और धेनु (गाय) का दान भी उसी के समकक्ष है।
इस एकादशी का व्रत करने से विद्या दान के समान फल प्राप्त होता है। जो लोग दूसरों की कन्या के धन से जीवनयापन करते हैं, वे पुण्य क्षीण हो जाने पर अत्यंत दुखदायी नरक में जाते हैं। इसलिए किसी को भी कन्याओं के धन का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति श्रद्धा और आभूषणों से सुसज्जित कन्या का दान करता है, उसका पुण्य चित्रगुप्त भी नहीं गिन सकते।
वरुथिनी एकादशी का पालन करने वाला व्यक्ति वैष्णव धर्म को अपनाते हुए दशमी के दिन कांसे के बर्तन, उड़द, मसूर, चना, कोदो, हरी सब्जियाँ, शहद, पराया अन्न, दिन में दो बार भोजन और मैथुन – इन दस चीजों का त्याग करे। एकादशी को जुआ, नींद, पान, दांत साफ करना, किसी की निंदा, चुगली, चोरी, हिंसा, क्रोध, असत्य भाषण – इन ग्यारह बुराइयों से बचना चाहिए।
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द्वादशी के दिन कांसा, उड़द, यात्रा, दिन में दो बार भोजन, मैथुन, बैल की पीठ पर सवारी और मसूर की दाल आदि बारह वस्तुओं का त्याग करना चाहिए। जो व्यक्ति इस विधिपूर्वक व्रत करता है और रातभर जागरण कर भगवान मधुसूदन की पूजा करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर परम पद को प्राप्त करता है।
इसलिए जो भी यम के भय से डरता है, उसे इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। इसका पाठ या श्रवण सहस्र गोदान जितना पुण्य देता है और व्रती विष्णु लोक में प्रतिष्ठित होता है।

Author: Suryodaya Samachar
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