संविधान की आत्मा और राष्ट्रहित: वरिष्ठ समाजसेवी और अधिवक्ता अरविन्द पुष्कर का हालिया बयान भारतीय राजनीति और संवैधानिक विमर्श में एक नई बहस को जन्म देता है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा निर्मित भारतीय संविधान में वक्फ बोर्ड कानून और अनुच्छेद 370 का कोई उल्लेख नहीं था। उनका दावा है कि ये प्रावधान बाद में जोड़कर देश की एकता और अखंडता के साथ समझौता किया गया, जो केवल एक खास वोट बैंक को खुश करने की रणनीति का हिस्सा थे।
अरविन्द पुष्कर का यह बयान केवल एक राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक संवैधानिक जागरूकता की मांग भी है। उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने जो संविधान रचा था, उसकी मूल भावना समता, एकता और राष्ट्रीय अखंडता थी। उस संविधान में ऐसी किसी व्यवस्था की कल्पना नहीं की गई थी जो देश को धार्मिक या क्षेत्रीय आधार पर बाँटे। उनका मानना है कि वक्फ बोर्ड और धारा 370 जैसे प्रावधानों को बाद में जबरन लागू किया गया ताकि एक खास समुदाय को तुष्ट किया जा सके और सत्ता की राजनीति को साधा जा सके।
धारा 370, जिसे जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने के लिए लागू किया गया था, वर्षों तक एक अस्थायी प्रावधान के रूप में संविधान में बना रहा। लेकिन इसका दुरुपयोग कर इसे स्थायी रूप देने की कोशिशें की गईं। इसी तरह वक्फ बोर्ड का कानून भी देश में समान नागरिक संहिता की अवधारणा के विरुद्ध खड़ा नजर आता है। पुष्कर का मानना है कि ये व्यवस्थाएं समाज को जोड़ने की बजाय तोड़ने का काम करती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि देश विरोधी ताकतों ने केवल 19% वोट बैंक को संतुष्ट करने के लिए इस तरह के प्रावधान लागू किए, जिससे समाज में असमानता और विभाजन की खाई बढ़ती चली गई। उनका यह आरोप बेहद गंभीर है और इसके पीछे राष्ट्रहित की गहरी चिंता दिखाई देती है।
पुष्कर का मानना है कि अब समय आ गया है जब भारत को इन अव्यवस्थित, असंवैधानिक और राष्ट्रविरोधी प्रावधानों से मुक्त किया जाए। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, “देश की समरसता, शांति और अखंडता के लिए जरूरी है कि ऐसे सभी प्रावधान, जो समाज को बाँटते हैं, उन्हें समाप्त किया जाए।”
उनका यह वक्तव्य संविधान की मूल भावना को फिर से समझने और उसे लागू करने की एक सशक्त अपील है। यह केवल एक राजनीतिक मत नहीं, बल्कि भारत के नागरिकों के लिए एक चिंतन का विषय है कि क्या आज हम उसी संविधान के अनुसार चल रहे हैं, जो बाबा साहब ने हमें दिया था?
एडवोकेट अरविन्द पुष्कर के इस बयान ने निश्चित रूप से एक गंभीर और ज़रूरी विमर्श को जन्म दिया है, जो आने वाले समय में देश की संवैधानिक दिशा को प्रभावित कर सकता है।
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Author: Suryodaya Samachar
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