Varanasi news :- [रिपोर्टर अजय कुमार गुप्ता] वाराणसी के राजातालाब क्षेत्र में छठ पर्व की शुरुआत बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ हुई। यह पवित्र पर्व विशेष रूप से महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि और पति की लंबी उम्र के लिए मनाती हैं। इस पर्व में 36 घंटे का कठिन व्रत रखा जाता है, जिसमें महिलाएं बिना पानी पिए तपस्या करती हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक मनाए जाने वाले इस पर्व का प्रारंभ नहाय-खाय से होता है, जो अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ शुरू होकर अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने पर संपन्न होता है।
नहाय-खाय से छठ की शुरुआत
छठ पर्व का शुभारंभ नहाय-खाय से होता है। इस दिन व्रती महिलाएं पहले गंगा या किसी पवित्र जल में स्नान करती हैं और फिर शुद्ध भोजन ग्रहण करती हैं। इस शुद्धता को बनाए रखने के लिए व्रतधारी महिलाएं पूरी तपस्या और पवित्रता का पालन करती हैं। इसके बाद तालाब या नदी के किनारे छठ मइया के लिए विशेष वेदी तैयार की जाती है, जहां पूजा होती है। वेदी को फूलों और दीयों से सजाया जाता है और इसे बहुत विशेष रूप से तैयार किया जाता है। इस वेदी पर महिलाएं छठ मइया की पूजा कर अपने परिवार की खुशहाली और मंगल की कामना करती हैं।
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व
छठ पर्व का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा अस्ताचलगामी और उदित सूर्य को अर्घ्य देना है। सूर्य, जीवन और ऊर्जा का स्रोत माने जाते हैं, इसलिए इस पर्व में सूर्य देवता की उपासना की जाती है। शाम को जब सूर्य अस्त होता है, तो महिलाएं तालाब, नदी या जल स्रोत में खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं। अर्घ्य देने के समय घाटों पर एक अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है, जहां दीपों की जगमगाहट और श्रद्धालुओं के भक्ति-गीत माहौल को भक्तिमय बना देते हैं। इस अनुष्ठान के माध्यम से छठ मइया को प्रसन्न करने की मान्यता है और विश्वास है कि इससे परिवार पर सुख-समृद्धि बनी रहती है।
उगते सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व
अगली सुबह, छठ पूजा का समापन उगते सूर्य को अर्घ्य देने से होता है। इसे पर्व का अंतिम और अत्यंत महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। महिलाएं सूर्योदय से पहले घाट पर पहुंचकर सूर्य की पहली किरण के दर्शन करती हैं और अर्घ्य अर्पित करती हैं। ऐसा माना जाता है कि सूर्य की ऊर्जा और प्रकाश से सभी कष्टों का निवारण होता है। इस दौरान महिलाएं छठ मइया के गीत गाती हैं, जो इस पर्व के प्रति उनकी आस्था और समर्पण को प्रदर्शित करते हैं।
पवित्र वेदी और छठी मइया के गीतों का महत्व
पूरे छठ पर्व के दौरान महिलाएं छठ मइया के लिए वेदी तैयार करती हैं, जिसे फूलों और दीयों से सजाया जाता है। इस दौरान छठ मइया के गीत गाए जाते हैं, जैसे “छठी मइया तोहार महिमा अपरम्पार बा,” जो श्रद्धा और भक्तिभाव को बढ़ाते हैं। इन गीतों के माध्यम से महिलाएं छठ मइया के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करती हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस समय घाटों पर दीपों की रोशनी और भक्तिमय गीतों का संगम एक दिव्य माहौल बनाता है।
छठ पर्व की तैयारियां और बाजार का माहौल
छठ पर्व की तैयारियों में तालाबों और नदियों की सफाई से लेकर पूजा सामग्री की खरीद तक कई कार्य शामिल होते हैं। बाजार में पूजा के लिए सूप, दउरा, फलों, गन्ने, नारियल और अन्य पूजा सामग्री की भारी मांग रहती है। विशेष रूप से सूप और दउरा (बांस की बनी टोकरी) को सजाकर तैयार किया जाता है, जिसे श्रद्धालु बड़े सम्मान के साथ खरीदते हैं। पूजा के दौरान सूप और दउरा में प्रसाद और अन्य सामग्री रखी जाती है और इसे विधि-विधान से अर्पित किया जाता है।
बिहार से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता
छठ पर्व की शुरुआत बिहार से मानी जाती है, लेकिन आज यह उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और नेपाल तक फैल चुका है। यह पर्व न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्ध हो गया है और इसका महत्व हर जगह बढ़ता जा रहा है। आज छठ पर्व सिर्फ एक राज्य का नहीं बल्कि पूरे देश का पर्व बन चुका है। हर वर्ष इस पर्व के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था और बढ़ती जा रही है।
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छठ पर्व न केवल भक्ति और तपस्या का प्रतीक है, बल्कि यह परिवार के प्रति समर्पण और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव भी व्यक्त करता है। महिलाएं छठ मइया और सूर्य देवता से अपने परिवार की खुशहाली, पति की लंबी उम्र और संतान की समृद्धि की कामना करती हैं। इस पर्व के माध्यम से प्रकृति, जल, सूर्य और परिवार के प्रति जो आस्था प्रकट होती है, वह इस पर्व को विशेष और अद्वितीय बनाती है।
Author: Suryodaya Samachar
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