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Varanasi News:- गंगा स्वच्छता अभियान: नदियों को निर्माल्य से मुक्त रखने का प्रयास…

Varanasi News :- भारत में नदियों को आस्था का प्रतीक माना जाता है, विशेषकर गंगा नदी को। धार्मिक महत्व के कारण लोग अक्सर पूजा के बाद बचे हुए सामग्री (निर्माल्य) को गंगा में विसर्जित कर देते हैं। हालांकि, यह धार्मिक आस्था का प्रतीक है, लेकिन पर्यावरणीय दृष्टिकोण से यह गंभीर समस्या भी है। गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों में पूजन सामग्री और अन्य कचरे का विसर्जन नदियों को प्रदूषित कर रहा है, जिससे जल जीवन और इंसानों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

नमामि गंगे अभियान का उद्देश्य

नमामि गंगे अभियान, भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक परियोजना है, जिसका उद्देश्य गंगा और उसकी सहायक नदियों की स्वच्छता को बनाए रखना है। इस परियोजना का मकसद है कि गंगा में न केवल स्वच्छ जल प्रवाहित हो, बल्कि नदी के किनारों को भी स्वच्छ रखा जा सके। दीपावली के अवसर पर, जब विभिन्न प्रकार की पूजा सामग्री और अन्य निर्माल्य का विसर्जन गंगा में बढ़ जाता है, नमामि गंगे टीम ने विशेष अभियान चलाया ताकि लोग गंगा में कोई सामग्री न फेंकें।

राजघाट पुल पर नमामि गंगे का स्वच्छता अभियान

बुधवार को दीपावली के पूर्व नमामि गंगे की टीम ने वाराणसी के राजघाट पुल पर एक विशेष स्वच्छता अभियान चलाया। इस अभियान में नमामि गंगे काशी क्षेत्र के संयोजक और नगर निगम के स्वच्छता ब्रांड एंबेसडर राजेश शुक्ला ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने घंटों मेहनत करके सैकड़ों लोगों को मालवीय पुल से गंगा में पूजा सामग्री और अन्य निर्माल्य को फेंकने से रोका।

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राजेश शुक्ला ने लोगों को गंगा में सामग्री न फेंकने के लिए प्रेरित किया और कहा कि निर्माल्य को उचित स्थान पर विसर्जित करना चाहिए। उन्होंने लोगों से गंगा की स्वच्छता और उसकी पवित्रता को बनाए रखने के लिए अपील की। इसके साथ ही, राजघाट पुल पर एकत्रित गंदगी को इकट्ठा करके कूड़ेदान तक पहुंचाया।

धार्मिक आस्थाओं का सम्मान और पर्यावरण संरक्षण

यह जरूरी है कि हम धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करते हुए पर्यावरण को भी संरक्षित करें। गंगा में निर्माल्य डालने से पानी में कई प्रकार की अशुद्धियाँ घुल जाती हैं, जो न केवल जल जीवन को प्रभावित करती हैं, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी असर डालती हैं। दीपावली के पांच दिवसीय आयोजन के दौरान, घरों से बड़ी मात्रा में निर्माल्य निकलता है, जिसे लोग परंपरागत रूप से नदी में विसर्जित कर देते हैं। नमामि गंगे का यह प्रयास है कि लोगों को जागरूक किया जाए और उन्हें अन्य विकल्प सुझाए जाएं, जिससे वे अपनी आस्था का पालन करते हुए पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाएं।

निर्माल्य विसर्जन के पर्यावरणीय प्रभाव

निर्माल्य में फूल, पत्तियाँ, धूप-अगरबत्ती, कपड़े, प्लास्टिक और अन्य सामग्रियाँ शामिल होती हैं, जो गंगा में मिलकर पानी की गुणवत्ता को खराब करती हैं। यह जैव विविधता को नुकसान पहुंचाती हैं और मछलियों एवं अन्य जलीय जीवों के लिए भी हानिकारक होती हैं। साथ ही, यह जल को पीने और अन्य घरेलू उपयोग के लिए अनुपयुक्त बना देती है। इस प्रकार के कचरे से जल जनित रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है, जिससे न केवल जलीय जीवन प्रभावित होता है, बल्कि मनुष्यों पर भी बुरा असर पड़ता है।

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नमामि गंगे की जन जागरूकता पहल

नमामि गंगे अभियान के अंतर्गत, लोगों को जागरूक करना एक प्रमुख उद्देश्य है। राजेश शुक्ला और उनकी टीम ने लोगों को समझाया कि गंगा और उसकी सहायक नदियों को स्वच्छ रखना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। इस पहल के माध्यम से उन्होंने सैकड़ों लोगों को गंगा में निर्माल्य न फेंकने की प्रेरणा दी और उन्हें बताया कि गंगा स्वच्छ रहेंगी तो हम सभी स्वस्थ रहेंगे।

निर्माल्य विसर्जन के वैकल्पिक उपाय

पर्यावरण की दृष्टि से, निर्माल्य को नदियों में डालने की बजाय उसे अन्य तरीकों से विसर्जित करना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित वैकल्पिक उपाय सुझाए जा सकते हैं:

1. निर्माल्य कम्पोस्टिंग: पूजा के फूलों और अन्य जैविक सामग्री को कम्पोस्ट करके खाद में बदला जा सकता है, जिससे पौधों के लिए पोषक तत्व मिलते हैं।

2. निर्माल्य संग्रहण बिंदु: विशेष अवसरों पर नगर निगम द्वारा निर्माल्य संग्रहण बिंदु बनाए जा सकते हैं, जहां लोग अपनी पूजा सामग्री जमा कर सकते हैं।

3. निर्माल्य रीसाइक्लिंग: कुछ एनजीओ और संस्थाएँ निर्माल्य के रीसाइक्लिंग के काम में लगी हुई हैं, जहाँ इन सामग्रियों को कला उत्पादों या अन्य उपयोगी चीजों में बदला जाता है।

सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव की आवश्यकता

इस प्रकार के अभियान तभी सफल हो सकते हैं, जब लोग इसे अपनी जिम्मेदारी समझकर सहयोग करें। समाज में एक स्थायी बदलाव की आवश्यकता है, जिससे नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए लोगों की सोच में भी बदलाव आए। इस प्रकार की सोच से ही हम गंगा और अन्य नदियों की स्वच्छता बनाए रख सकते हैं।

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गंगा नदी का स्वच्छ रहना न केवल धार्मिक महत्व का है, बल्कि यह एक स्वास्थ्य और पर्यावरण की दृष्टि से भी आवश्यक है। नमामि गंगे का यह अभियान, लोगों को जागरूक करने का एक सराहनीय प्रयास है। यदि हम सभी मिलकर गंगा की स्वच्छता बनाए रखने में योगदान दें, तो यह हमारे आने वाले पीढ़ियों के लिए एक उपहार होगा। आइए, हम सभी संकल्प लें कि गंगा और उसकी सहायक नदियों में किसी भी प्रकार की अशुद्धि नहीं फैलाएंगे और इस महान धरोहर की पवित्रता बनाए रखेंगे।

इस लेख में दीपावली के अवसर पर गंगा में निर्माल्य विसर्जन रोकने के प्रयासों पर जोर दिया गया है। उम्मीद है कि इससे पाठकों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए समर्थन मिलेगा।

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Author: Suryodaya Samachar

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