Pausha Putrada Ekadashi 2024 : सनातन धर्म में पौष पुत्रदा एकादशी का दिन बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इस साल यह उपवास 21 जनवरी के दिन रविवार यानी आज रखा जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भक्त इस व्रत को रखते हैं उन्हें देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। तो चलिए इससे जुड़ी कुछ विशेष बातों को जानते हैं –
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एकादशी तिथि का प्रारंभ – 20 जनवरी 2024 शाम 07:26 बजे से
एकादशी तिथि का समापन – 21 जनवरी 2024 को शाम 07:26 बजे
एकादशी व्रत पारण का समय- 22 जनवरी दिन सोमवार सुबह 07:14 बजे से सुबह 09:21 बजे तक।
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा- राजन्! पौष के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी है, उसे बतलाता हूं सुनो। महाराज! संसार के हित की इच्छा से मैं इसका वर्णन करता हूं। राजन्! पूर्वोक्त विधि से ही यत्नपूर्वक इसका व्रत करना चाहिए। इसका नाम ‘पुत्रदा’ है। यह सब पापों को हरने वाली उत्तम तिथि है। समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान् नारायण इस तिथि के अधिदेवता हैं। चराचर गणियों सहित समस्त त्रिलोकी में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है।
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा :
पूर्वकाल की बात है, भद्रावती पुरी में राजा सुकेतुमान् राज्य करते थे। उनको रानी का नाम चम्पा था। राजा को बहुत समय तक कोई वंशधर पुत्र नहीं प्राप्त हुआ था इसलिए दोनों पति-पत्नी सदा चिंता और शोक में डूबे रहते थे। राजा के पितर उनके दिए हुए जल को बड़े ही शोक के साथ पीते थे और सोचते थे, कि राजा के बाद और कोई ऐसा नहीं दिखायी देता, जो हम लोगों का तर्पण करेगा । यह सोच-सोचकर पितर दुःखी हो जाते थे।
एक दिन राजा घोड़े पर सवार होकर घने वन में चले गए। पुरोहित आदि किसी को भी इस बात का पता न था। मृग और पक्षियों से सेवित उस सघन वन में राजा भ्रमण करने लगे। मार्ग में कहीं सियार की बोली सुनाई पड़ती थी तो कहीं उल्लुओं की। जहां-तहां रीछ और मृग दृष्टिगोचर हो रहे थे। इस प्रकार घूम घूमकर राजा वन की शोभा देख रहे थे, इतने में दोपहर हो गई। राजा को भूख और प्यास सताने लगी। वे जल की खोज में इधर-उधर भागने लगे। किसी पुण्य के प्रभाव से उन्हें एक उत्तम सरोवर दिखायी दिया, जिसके समीप मुनियों के बहुत से आश्रम थे। शोभाशाली नरेश ने उन आश्रमों की ओर देखा तो उस समय शुभ की सूचना देने वाले शकुन होने लगे। राजा का दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा, जो उत्तम फल की ओर संकेत कर रहा था। सरोवर के तट पर बहुत से मुनि वेद-पाठ कर रहे थे। उन्हें देखकर राजा को बहुत खुशी हुई । वे घोड़े से उतरकर मुनियों के सामने खड़े हो गए और पृथक् पृथक् उन सबकी वन्दना करने लगे। ये मुनि उत्तम व्रत का पालन करने वाले थे। तब राजा ने हाथ जोड़कर बारम्बार दण्डवत् प्रणाम किया, तब मुनि बोले- ‘राजन् ! हम लोग तुम पर प्रसन्न है।’
मुनि बोले- राजन् ! हम लोग विश्वेदेव है, यहां स्रान के लिए आए हैं। माघ निकट आ रहा है। आज से पांचवें दिन माघ का स्नान आरम्भ हो जाएगा। आज ही ‘पुत्रदा’ नामक एकादशी है, जो व्रत करने वाले मनुष्यों को पुत्र देती है।
राजा ने कहा – विश्वेदेवगण ! यदि आप लोग प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र का वरदान दीजिए। मुनि बोले- राजन् ! आज के ही दिन ‘पुत्रदा’ नामकी एकादशी है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो। महाराज! भगवान् केशव के प्रसाद से तुम्हें अवश्य पुत्र प्राप्त होगा। इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उत्तम व्रत का पालन किया। महर्षियों के उपदेश के अनुसार विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशी का अनुष्ठान किया। फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में नतमस्तक होकर राजा अपने घर आए। तदनन्तर रानी ने गर्भ धारण किया। प्रसवकाल आने पर पुण्यकर्मा राजा को तेजस्वी पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट कर दिया। वह प्रजाओं का पालक हुआ। इसलिए राजन्! ‘पुत्रदा’का उत्तम व्रत ही अवश्य करना चाहिए। मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है। जो मनुष्य एकाग्रचित होकर ‘पुत्रदा’ का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात स्वर्गगामी होते है। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है ।
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Author: Suryodaya Samachar
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