Madras High Court : मद्रास हाईकोर्ट 11 जनवरी को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि केवल बाल पोर्नोग्राफी देखना यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम और सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत अपराध नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने जिस 28 वर्षीय व्यक्ति पर बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री डाउनलोड करने और देखने का आरोप लगाया गया था उसे भी रद्द कर दिया।
इस केस की सुनवाई न्यायमूर्ति आनंद वेंकटेश कर रहे थे। उन्होनें सुनवाई के दौरान कहा कि ‘पॉक्सो अधिनियम के तहत आरोप लगाने के लिए “किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल अश्लील साहित्य के लिए किया गया’ होना जरुरी है।”
पॉक्सो अधिनियम की धारा 14(1)
अदालत ने अपने 11 जनवरी के आदेश में कहा कि “पॉक्सो अधिनियम की धारा 14(1) के तहत अपराध बनाने के लिए, किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल अश्लील साहित्य के लिए किया गया होगा। यहां तक कि यह मानते हुए भी कि आरोपी व्यक्ति ने बाल पोर्नोग्राफी वीडियो देखा था, यह सख्ती से यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम, 2012 की धारा 14 (1) के दायरे में नहीं आएगा।”
2020 का केस
जनवरी 2020 में, अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध) द्वारा प्राप्त एक पत्र के आधार पर याचिकाकर्ता एस हरीश पर दो अधिनियमों के तहत मामला दर्ज किया गया था। जांच के तहत उसका मोबाइल फोन जब्त कर लिया गया। फोरेंसिक विज्ञान विभाग ने दो फाइलों की पहचान करते हुए पुलिस को एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें बाल पोर्नोग्राफ़ी सामग्री शामिल थी। अपनी याचिका में, 28 वर्षीय व्यक्ति ने कहा कि वह नियमित रूप से पोर्नोग्राफी देखता है, लेकिन उसने बाल पोर्नोग्राफिक सामग्री नहीं देखी।
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Author: Suryodaya Samachar
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