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Lucknow news :- बिजली कर्मचारियों का निजीकरण के खिलाफ ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन

Lucknow news :- उत्तर प्रदेश में बिजली कर्मचारियों ने निजीकरण के खिलाफ अपनी लड़ाई को और तेज़ कर दिया है। आज राजधानी लखनऊ स्थित शक्ति भवन मुख्यालय पर हजारों बिजली कर्मचारियों ने जोरदार प्रदर्शन किया, जिसके चलते निजीकरण से जुड़ी टेक्निकल बिड नहीं खोली जा सकी।

बिजली कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने इस निजीकरण प्रक्रिया को भारी भ्रष्टाचार से प्रभावित बताते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से हस्तक्षेप की अपील की है। संघर्ष समिति ने दावा किया है कि यदि यह निजीकरण हुआ तो प्रदेश के करोड़ों उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा और बिजली व्यवस्था में भीषण अराजकता फैल सकती है।

संघर्ष समिति की कड़ी आपत्ति और आंदोलन की तीव्रता

संघर्ष समिति ने इस पूरी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि सरकार ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट की नियुक्ति के जरिए निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रही है। आर.एफ.पी. डॉक्यूमेंट में पहले ‘कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ का प्रावधान था, जिसे जनवरी 2025 में अचानक हटा दिया गया।

यह बदलाव खुद ही इस प्रक्रिया में गहरी साजिश और घोटाले की ओर इशारा करता है। इससे यह आशंका बलवती हो जाती है कि पूरी प्रक्रिया को मनमाने ढंग से संचालित किया जा रहा है, और इसमें पारदर्शिता का पूरी तरह अभाव है।

संघर्ष समिति ने यह भी आरोप लगाया है कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की परिसंपत्तियों का कोई उचित मूल्यांकन नहीं किया गया है। इन निगमों के राजस्व संभावनाओं (Revenue Potential) का भी आकलन किए बिना निजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा रहा है।

इसे इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 के सेक्शन 131 और सीवीसी गाइडलाइंस का खुला उल्लंघन करार दिया गया है। संघर्ष समिति ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक निजीकरण की प्रक्रिया को पूरी तरह रद्द नहीं किया जाता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।

प्रदेशभर में उग्र प्रदर्शन, 96वें दिन भी जारी संघर्ष

आज राजधानी लखनऊ के अलावा वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर, मिर्जापुर, आजमगढ़, बस्ती, अलीगढ़, मथुरा, एटा, झांसी, बांदा, बरेली, देवीपाटन, अयोध्या, सुल्तानपुर, हरदुआगंज, पारीछा, ओबरा, पिपरी और अनपरा जैसे शहरों में भी जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए।

यह आंदोलन अपने 96वें दिन में प्रवेश कर चुका है, और बिजली कर्मचारियों का जोश अब भी चरम पर है। प्रदर्शनकारियों ने साफ कर दिया है कि वे किसी भी हाल में अपनी मांगों से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।

शक्ति भवन पर हुआ ऐतिहासिक घेराव

लखनऊ में हुए प्रदर्शन के दौरान संघर्ष समिति के पदाधिकारियों राजीव सिंह, जितेन्द्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेन्द्र राय, पी.के. दीक्षित, सुहैल आबिद, राजेंद्र घिल्डियाल, चंद्र भूषण उपाध्याय, आर.वाई. शुक्ला, छोटेलाल दीक्षित, देवेन्द्र पाण्डेय, आर.बी. सिंह, राम कृपाल यादव, मो. वसीम, मायाशंकर तिवारी, राम चरण सिंह, मो. इलियास, श्रीचन्द, सरजू त्रिवेदी, योगेन्द्र कुमार, ए.के. श्रीवास्तव, के.एस. रावत, रफीक अहमद, पी.एस. बाजपेई, जी.पी. सिंह, राम सहारे वर्मा, प्रेम नाथ राय, विशम्भर सिंह एवं राम निवास त्यागी ने अपने विचार रखे।

जूनियर इंजीनियर्स संगठन, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष इं. अजय कुमार, पूर्व अध्यक्ष इं. जी.वी. पटेल सहित हजारों जूनियर इंजीनियर भी इस प्रदर्शन में शामिल हुए। इसके अलावा विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा और पॉवर ऑफिसर्स एसोसिएशन के कई सदस्य भी इस आंदोलन में शामिल हुए।

विद्युत तकनीकी कर्मचारी एकता संघ के अध्यक्ष दिव्यांशु सिंह और उनके समर्थकों ने भी विरोध प्रदर्शन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

क्या है आगे की रणनीति?

संघर्ष समिति ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि सरकार ने 10 मार्च 2025 को प्रस्तावित टेक्निकल बिड को खोलने का प्रयास किया, तो प्रदेशभर में उग्र प्रदर्शन होगा। समिति ने सरकार को आगाह किया है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो प्रदेशव्यापी हड़ताल का ऐलान किया जा सकता है।

बिजली कर्मचारियों का मानना है कि निजीकरण की आड़ में सरकारी संपत्तियों को औने-पौने दामों में बेचा जा रहा है, जिससे आम जनता को महंगी बिजली और खराब सेवाओं का सामना करना पड़ेगा।

क्या कहते हैं प्रदर्शनकारी?

विरोध प्रदर्शन में शामिल एक बिजली कर्मचारी ने कहा,“हमने अपनी पूरी जिंदगी इस सिस्टम को बेहतर बनाने में लगा दी, लेकिन अब सरकार इसे चंद निजी हाथों में सौंपकर करोड़ों लोगों के साथ अन्याय कर रही है। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।”

एक अन्य कर्मचारी ने कहा, “अगर सरकार पारदर्शिता के साथ निजीकरण करना चाहती है, तो परिसंपत्तियों और राजस्व का उचित आकलन क्यों नहीं किया गया? यह साफ दर्शाता है कि इसमें कोई न कोई गड़बड़ी जरूर है।”

क्या सरकार देगी कर्मचारियों को राहत?

अब सबकी निगाहें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर टिकी हैं। बिजली कर्मचारियों को उम्मीद है कि मुख्यमंत्री उनकी मांगों पर ध्यान देंगे और भ्रष्टाचार की आशंकाओं को देखते हुए निजीकरण प्रक्रिया को रद्द करेंगे।

यदि सरकार कोई ठोस निर्णय नहीं लेती है, तो यह आंदोलन और बड़े स्तर पर फैल सकता है, जिससे प्रदेश की बिजली आपूर्ति भी प्रभावित हो सकती है।

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संघर्ष समिति ने साफ कह दिया है कि जब तक सरकार निजीकरण को पूरी तरह रद्द नहीं करती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।

अब देखना यह होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है और बिजली कर्मचारियों की इस ऐतिहासिक लड़ाई का क्या अंजाम होता है।

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Author: Suryodaya Samachar

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