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History of Diwali :- जब राम जी वनवास से लौटे थे तो क्यों होती है गणेश लक्ष्मी की पूजा, आखिर क्या था गणेश जी का लक्ष्मी मां से संबंध ? आइए जानें

History of Diwali :- भारत की सांस्कृतिक धरोहर में पर्व और त्यौहारों का विशेष स्थान है। प्रत्येक त्यौहार के पीछे कोई पौराणिक कथा, ऐतिहासिक घटना, या सांस्कृतिक कारण होता है। दीपावली भी इन्हीं पर्वों में से एक है, जिसे हम बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाते हैं। परंतु क्या आप जानते हैं कि दीपावली पर हम भगवान श्रीराम की बजाय माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा क्यों करते हैं? यह प्रश्न कई बार लोगों के मन में उठता है। इस लेख में हम इस त्यौहार के पीछे की पौराणिक कथा और उसके महत्त्व को समझने का प्रयास करेंगे।



दीपावली का पौराणिक इतिहास

दीपावली का पर्व दो युगों – सतयुग और त्रेता युग – से जुड़ा हुआ है। सतयुग में जब समुद्र मंथन हुआ था, तब माँ लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। यह घटना कार्तिक अमावस्या के दिन ही हुई थी, इसलिए इस दिन को लक्ष्मी पूजन के रूप में मनाया जाता है। दूसरी ओर, त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने 14 वर्षों का वनवास पूरा करने के बाद इसी दिन अयोध्या में वापसी की थी। उनके आगमन की खुशी में अयोध्या वासियों ने घर-घर दीप जलाए थे और यह पर्व ‘दीपावली’ के नाम से प्रचलित हो गया। इसलिए दीपावली के पर्व में लक्ष्मी पूजन और दीपों का संयोजन एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रतीक है।

लक्ष्मी पूजन का महत्त्व

दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के पीछे माँ लक्ष्मी के प्राकट्य की कथा जुड़ी है। समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में लक्ष्मी जी को धन और समृद्धि की देवी माना गया। माना जाता है कि कार्तिक अमावस्या की रात को माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और वे उन घरों में वास करती हैं जहाँ सफाई, सजावट और पवित्रता हो। इसलिए दीपावली पर घरों की साफ-सफाई, रंगोली सजाना, और दीप जलाना एक रिवाज बन गया। लोग मानते हैं कि इस दिन लक्ष्मी जी की कृपा से घर में धन-धान्य की बरकत होती है और यह वर्षभर बनी रहती है।

भगवान गणेश का धन की देवी लक्ष्मी से संबंध

लक्ष्मी पूजन के साथ दीपावली पर भगवान गणेश का पूजन भी होता है। इसके पीछे एक रोचक कथा है। जब माता लक्ष्मी धन की देवी बनीं, तो उन्होंने इसे सही ढंग से वितरित करने के लिए कुबेर को धन का संरक्षक और मैनेजर नियुक्त किया। लेकिन कुबेर ने अपने कंजूस स्वभाव के कारण धन को बांटना कम कर दिया और उसे अपने पास संचित कर लिया। इस समस्या को दूर करने के लिए माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से सलाह ली। भगवान विष्णु ने उन्हें सुझाव दिया कि वे गणेश जी को धन के वितरण का कार्य सौंपें, क्योंकि गणेश जी के पास विशाल बुद्धि और उदारता है।

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गणेश जी ने शर्त रखी कि वे जिस व्यक्ति का नाम लेंगे, लक्ष्मी जी को उसी पर कृपा करनी होगी। माँ लक्ष्मी ने यह शर्त मान ली, और इस प्रकार गणेश जी ने सभी सौभाग्यशाली व्यक्तियों के विघ्न और बाधाओं को दूर करते हुए उनके लिए धन के द्वार खोल दिए। तभी से गणेश जी को सौभाग्य और समृद्धि के प्रतीक के रूप में पूजा जाने लगा और लक्ष्मी जी ने भी गणेश जी को अपने पुत्रवत मान लिया। यह भी मान्यता है कि जहाँ लक्ष्मी जी और विष्णु जी एक साथ नहीं हो सकते, वहाँ गणेश जी को लक्ष्मी जी के साथ पूजा जाता है। इस तरह, दीपावली पर लक्ष्मी और गणेश की संयुक्त पूजा का प्रचलन शुरू हुआ।

दीपावली और लक्ष्मी-गणेश पूजन की प्रासंगिकता

हर वर्ष दीपावली का पर्व कार्तिक अमावस्या को आता है, जब विष्णु भगवान योगनिद्रा में रहते हैं। इसलिए इस समय लक्ष्मी जी पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए गणेश जी को अपने साथ लेकर आती हैं। गणेश जी की उपस्थिति से वे यह सुनिश्चित करती हैं कि सभी के लिए धन और समृद्धि के मार्ग खुले रहें। यह भी कहा जाता है कि जहाँ गणेश जी का निवास होता है, वहाँ विघ्न और बाधाएँ नहीं होतीं, और यह समृद्धि की दिशा में प्रमुख कारक है।

इस प्रकार लक्ष्मी और गणेश की संयुक्त पूजा हमें यह संदेश देती है कि केवल धन होना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे सही ढंग से उपयोग करना भी महत्वपूर्ण है। लक्ष्मी केवल धन की देवी नहीं हैं, वे सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक भी हैं। वहीं गणेश जी की बुद्धिमत्ता हमें यह सिखाती है कि धन के सदुपयोग और समृद्धि के लिए सही मार्गदर्शन आवश्यक है। इसलिए, दीपावली के अवसर पर इन दोनों देवी-देवताओं की पूजा करना एक संतुलित और सफल जीवन का प्रतीक माना गया है।

आधुनिक परिप्रेक्ष्य में दीपावली का संदेश

वर्तमान समय में दीपावली का महत्त्व केवल धार्मिक और सांस्कृतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप में भी है। आज की व्यस्त दिनचर्या में दीपावली का यह पर्व परिवार, मित्रों और समाज के लोगों को एक साथ लाने का एक अवसर प्रदान करता है। इस समय लोग अपने घरों को सजाते हैं, एक-दूसरे से मिलते हैं, उपहार देते हैं, और एकता और सद्भाव का संदेश फैलाते हैं। इसके साथ ही, यह पर्व हमें याद दिलाता है कि सही मायनों में समृद्धि केवल भौतिक सुख-सुविधाओं में नहीं, बल्कि आत्मिक संतोष और मन की शांति में होती है।

इस प्रकार, दीपावली का पर्व केवल भगवान श्रीराम के वनवास से लौटने का प्रतीक नहीं है, बल्कि लक्ष्मी जी के प्राकट्य और गणेश जी के सहयोग से भी जुड़ा है। यह त्यौहार हमें यह सिखाता है कि हमारे जीवन में समृद्धि, सौभाग्य, और शांति का संतुलन बनाए रखने के लिए ज्ञान, उदारता, और शुभ चिंतन का महत्त्व है। दीपावली का यह पर्व न केवल हमें अपनों से जोड़ता है, बल्कि हमारे भीतर सकारात्मकता और उत्साह का संचार भी करता है।

इस दीपावली पर जब हम लक्ष्मी-गणेश का पूजन करेंगे, तो यह स्मरण रखें कि इनकी पूजा केवल आस्था के लिए नहीं, बल्कि हमें अपने जीवन में संतुलन, सद्भाव, और समृद्धि लाने के लिए प्रेरित करती है।

 

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Author: Suryodaya Samachar

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