Janmashtami 2024 :जन्माष्टमी व्रत की महिमा: जन्माष्टमी का पर्व हिंदू धर्म के लिए त्योहार के समान है। श्रीकृष्ण का जन्म बड़े ही धूमधाम, हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी मनाई जाती है। इसके उपरांत 6 दिन के बाद छठी मनाई जाती । आइए जानते है ब्रह्मवैवर्त पुराण में क्या मान्यता बताई गई है , इस व्रत के क्या फल है….
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार
जन्माष्टमी व्रत की महिमा का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में बहुत विस्तार से किया गया है। इस पुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। जन्माष्टमी का व्रत और उपवास करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
बताया जाता है कि जन्माष्टमी , एक करोड़ एकादशी व्रत के फल के बराबर मानी गई है। इस दिन बिना अन्न खाए भगवान का भजन करना चाहिए, उनके जन्म दिन पर कुछ भेट करना चाहिए। पुराण के अनुसार, जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने वाले भक्त को जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाले व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद मिलता है। यह व्रत केवल इसी जन्म में ही नहीं, बल्कि अगले जन्मों में भी पुण्य प्रदान करता है।
इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
1. पापों का नाश: जन्माष्टमी व्रत का पालन करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट होते हैं। चाहे वह इस जन्म के पाप हों या पिछले जन्मों के, सभी का नाश होता है।
2. मोक्ष की प्राप्ति: जो व्यक्ति विधिपूर्वक जन्माष्टमी का व्रत करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त होती है।
3. कृष्ण भक्ति की प्राप्ति: व्रत करने वाले व्यक्ति के ह्रदय में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति जागृत होती है। भगवान का सानिध्य प्राप्त होता है और उनके अनुग्रह से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
4. धर्म और पुण्य का अर्जन: व्रत करने से व्यक्ति को असीम पुण्य की प्राप्ति होती है, जो उसके सभी प्रकार के संकटों का नाश करता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में यह भी कहा गया है कि जन्माष्टमी का व्रत यदि कोई व्यक्ति श्रद्धापूर्वक करता है, तो वह भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्तों में गिना जाता है और उसे भगवद कृपा प्राप्त होती है।