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हलषष्ठी व्रत 2024 : हलषष्ठी व्रत पर कैसे करें पूजा, जानिए पूजा विधि, व्रत कथा..

लषष्ठी व्रत  : संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाने वाला व्रत हलषष्ठी 25 अगस्त को है। हलषष्ठी को कमरछठ के नाम से भी जाना जाता है। हलषष्ठी पर्व को लेकर तैयारी पहले ही शुरू हो गई हैं। शहर के चौक-चौराहों पर पर्व के लिए बाजार सज गए है।शहर में इन दिनों पसहर चावल की बिक्री तेजी से हो रही है। पिछले साल की तुलना में इस बार चावल की बिक्री में 15 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। आइए बताते हैं व्रत में और क्या क्या सामग्री लगती है, एवं सम्पूर्ण पूजा विधि..

हलषष्ठी पूजा विधि

1. स्नान व स्वच्छता:  व्रत के दिन सुबह स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।

2. कलश स्थापना: पूजा स्थल को स्वच्छ कर वहां कलश स्थापित करें। उस पर एक पात्र में जौ और हल्दी रखें।
3. गणेश पूजन: सबसे पहले भगवान गणेश का पूजन करें। उन्हें फूल, धूप, दीप, रोली और चावल अर्पित करें।
4. हल और बैल की पूजा: हलषष्ठी के दिन हल और बैल की पूजा की जाती है। एक मिट्टी का हल और बैल बनाकर उसकी पूजा करें। उन्हें पानी, अक्षत (चावल), रोली, फूल और मिष्ठान्न अर्पित करें।
5. अन्न ग्रहण न करना: व्रत के दिन महिलाएं अन्न ग्रहण नहीं करतीं। विशेषकर खेती से संबंधित अन्न जैसे गेहूं, चावल आदि का सेवन वर्जित होता है।
6. छह प्रकार के फलों का अर्पण: हलषष्ठी व्रत में छह प्रकार के फलों को अर्पित करने का विशेष महत्व होता है। पूजा के बाद इन फलों का वितरण किया जाता है।
7. रात्रि जागरण: संध्या के समय पूजा करने के बाद व्रतधारी महिलाएं रातभर जागरण करती हैं और भजन-कीर्तन करती हैं।

व्रत कथा

हलषष्ठी व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। जब अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित का जन्म होने वाला था, तब उत्तरा की गर्भ पर अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रहार किया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में स्थित परीक्षित को बचाया। इसके बाद यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण से यह व्रत करने की सलाह दी ताकि उत्तरा का गर्भ सुरक्षित रहे। इस व्रत की महिमा से उत्तरा के गर्भ से स्वस्थ परीक्षित का जन्म हुआ। तभी से यह व्रत स्त्रियों द्वारा अपनी संतान की लंबी आयु और सुरक्षा के लिए किया जाता है।

हलषष्ठी की मान्यता

हलषष्ठी व्रत को संतान सुख और संतान की रक्षा के लिए विशेष रूप से किया जाता है। इसे **ललई छठ** और **रंधन छठ** के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं अपने बच्चों की सुख-समृद्धि और दीर्घायु के लिए भगवान बलराम और माता शष्ठी का पूजन करती हैं। हल से जुड़ी वस्तुओं का उपयोग वर्जित होता है, इसलिए खेत में हल से उत्पन्न अनाज और सब्जियों का सेवन व्रत के दिन नहीं किया जाता।

इस व्रत को करने से संतान की रक्षा, स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है और संतानहीन दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ति होती है।

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Avantika Singh
Author: Avantika Singh

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