*भाईजी श्रीहनुमानप्रसादपोद्दार जी के वचन*
परलोक में सहायता के लिए माता-पिता, पुत्र-स्त्री और संबंधी कोई नहीं रहते । वहां एक धर्म ही काम आता है। मरे हुए शरीर को बंधु-बांधव काठ और मिट्टी के ढेले के समान पृथ्वी पर पटककर घर चले जाते हैं। एक धर्म ही उसके साथ जाता है।
एक क्षण के लिए भी आयु का नाश होना बंद नहीं होता, क्योंकि शरीर अनित्य है। अतएव बुद्धिमान पुरुषों को विचारना चाहिए कि नित्य वस्तु कौन सी है। उस नित्य वस्तु को जान लेना ही सबसे बड़ा ज्ञान है।
सत्ययुग में भगवान् के ध्यानसे, त्रेतामें यज्ञ से, द्वापरमें सेवा से जो फल मिलता है, वही कलियुगमें केवल श्रीहरि कीर्तन से मिलता है….
*कृते यद् ध्यायतो विष्णुं त्रेतायां यजतो मखै:।*
*द्वापरे परिचर्यायां कलौ तद्धरिकीर्तनात्।।*(भागवत – 12.3.52)
भावार्थ : सत्ययुग में भगवान विष्णु के ध्यान से, त्रेता में यज्ञ से और द्वापर में भगवान की पूजा से जो फल मिलता था, वह सब कलियुग में भगवान के नाम-कीर्तनमात्र से प्राप्त हो जाता है ।
*कलियुग केवल नाम अधारा*
अतः जो दिन-रात श्रीहरि का प्रेमपूर्वक कीर्तन करते हुए ही घर का सारा काम करते हैं, वे भक्तगण ही धन्य हैं।
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