Holastak 2025 :- होलाष्टक का आरंभ होली से ठीक आठ दिन पहले होता है, और इसे हिंदू मान्यताओं के अनुसार अशुभ समय माना गया है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, इस अवधि में अशुभ ग्रहों की स्थिति के कारण नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
होलाष्टक क्यों माना जाता है अशुभ?
होलाष्टक की अवधि को अशुभ इसलिए माना जाता है क्योंकि इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने से वह पूर्ण नहीं होता, या फिर उसमें कई तरह की बाधाएं उत्पन्न होती हैं। मान्यता है कि इन आठ दिनों में कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नया व्यापार आदि आरंभ नहीं करने चाहिए, क्योंकि इन कार्यों की सिद्धि में कई तरह की अड़चनें आ सकती हैं। इस समय को रोग, पीड़ा और कठिनाइयों वाला काल भी माना जाता है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से होलाष्टक
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, होलाष्टक के दिनों में मुख्य रूप से शनि और मंगल जैसे उग्र ग्रहों की स्थितियों में परिवर्तन होता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस कारण इन दिनों को शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है।
राक्षसी शक्तियों से जुड़ा संबंध
एक अन्य मान्यता के अनुसार, होलाष्टक को राक्षसी शक्तियों का काल माना जाता है। इस दौरान असत्य और अंधकार का प्रभाव बढ़ता है, जिससे नकारात्मकता और अशांति का विस्तार होता है। यही कारण है कि होली से पूर्व इन आठ दिनों में शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है।
होलाष्टक की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे, लेकिन उनके पिता, दैत्यराज हिरण्यकश्यप को यह स्वीकार नहीं था। उसने अपने पुत्र की भक्ति को तोड़ने के लिए होलाष्टक के आठ दिनों तक उसे अनेक प्रकार की यातनाएँ दीं। हालांकि, भक्त प्रह्लाद ने हर परीक्षा को सहन किया और अंततः सत्य की जीत हुई। होलिका दहन के दिन प्रह्लाद सुरक्षित रहे और उनकी बुआ होलिका, जो प्रह्लाद को जलाने के लिए अग्नि में बैठी थी, स्वयं ही भस्म हो गई। इसी उपलक्ष्य में होली का पर्व उल्लासपूर्वक मनाया जाता है।
होलाष्टक को अशुभ इसलिए माना जाता है क्योंकि यह नकारात्मक ऊर्जा, राक्षसी प्रभाव और ग्रहों की प्रतिकूल स्थिति का काल है। इसी कारण इस अवधि में किसी भी शुभ कार्य को करने से बचना चाहिए और ईश्वर की भक्ति में समय व्यतीत करना चाहिए।

Author: Suryodaya Samachar
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