Varanasi news :- [रिपोर्टर अजय कुमार गुप्ता] वाराणसी, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने का गौरव प्राप्त है, वहां के बड़ागांव विकासखंड के सरावा गांव में लाखों रुपये की लागत से बना मुक्तिधाम आज बदहाल स्थिति में है। यह मुक्तिधाम अंतिम संस्कार जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया के लिए बनाया गया था, लेकिन वर्तमान में इसकी हालत ऐसी है कि यहां अंतिम संस्कार करना भी मुश्किल हो गया है।
मुक्तिधाम का निर्माण और जीर्णोद्धार
सरावा गांव में इस मुक्तिधाम का शिलान्यास 2015-16 में किया गया था। उस समय इसे गांव के लोगों के लिए एक बड़ी सुविधा के रूप में देखा गया था। मगर इस निर्माण में कितनी खामियां थीं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2021-22 में इसे फिर से जीर्णोद्धार की जरूरत पड़ गई। यह सवाल उठाता है कि जब लाखों रुपये खर्च कर एक नया मुक्तिधाम बनाया गया था, तो महज पांच-छह साल के अंदर ही इसकी मरम्मत की आवश्यकता क्यों पड़ गई?
क्या यह निर्माण में लापरवाही का परिणाम था या फिर भ्रष्टाचार का कोई खेल खेला गया? सरकारी धन का सही उपयोग हुआ या नहीं, यह जांच का विषय है, लेकिन स्थानीय प्रशासन की उदासीनता साफ नजर आ रही है।
गायब हुआ टीन शेड, सुविधा के नाम पर धोखा
मुक्तिधाम में जो टीन शेड लगाया गया था, वह भी अब गायब है। स्थानीय सूत्रों की मानें तो यह टीन शेड करीब तीन साल पहले ही गायब हो चुका है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने अब तक इस ओर ध्यान नहीं दिया। टीन शेड का उद्देश्य अंतिम संस्कार के दौरान लोगों को धूप और बारिश से बचाना था, लेकिन अब यह सुविधा भी समाप्त हो चुकी है।
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गांववालों का कहना है कि अधिकारियों से कई बार शिकायत करने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इस उदासीनता ने ग्रामीणों को सरकार और प्रशासन पर सवाल उठाने के लिए मजबूर कर दिया है। आखिर क्यों जिम्मेदार लोग इस समस्या को अनदेखा कर रहे हैं? क्या जनता के पैसे की कोई कीमत नहीं है?
ग्रामीणों की नाराजगी और प्रशासन की चुप्पी
सरावा गांव के लोग अब इस मुद्दे को उठाने के लिए तैयार हो चुके हैं। कई ग्रामीणों का कहना है कि यदि जल्द ही मुक्तिधाम की हालत नहीं सुधारी गई, तो वे उच्च अधिकारियों से इसकी शिकायत करेंगे और विरोध प्रदर्शन भी कर सकते हैं।
ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि मुक्तिधाम का निर्माण घटिया सामग्री से किया गया था, जिसके कारण यह कुछ ही वर्षों में जर्जर हो गया। कई जगहों पर दीवारों में दरारें आ चुकी हैं, फर्श उखड़ गया है और साफ-सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है।
स्थानीय प्रशासन इस पर चुप्पी साधे बैठा है। पंचायत और ब्लॉक स्तर के अधिकारियों से जब भी सवाल किया जाता है, तो वे केवल आश्वासन देकर मामले को टाल देते हैं।
क्या होगा समाधान?
सरावा गांव के मुक्तिधाम की यह दुर्दशा यह बताती है कि सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन किस तरह से होता है। लाखों रुपये खर्च होने के बावजूद यदि बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं, तो यह जनता के पैसे की बर्बादी नहीं तो और क्या है?
अब जरूरत इस बात की है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए और जो भी दोषी हो, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। साथ ही, मुक्तिधाम की जल्द से जल्द मरम्मत की जाए ताकि ग्रामीणों को अंतिम संस्कार जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया के लिए किसी कठिनाई का सामना न करना पड़े।
यदि प्रशासन ने अब भी इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया, तो जनता का आक्रोश फूटना तय है। सरकारी धन का सही इस्तेमाल सुनिश्चित करना और जनता को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। सवाल यह है कि क्या जिम्मेदार अधिकारी इस मामले में जागरूक होंगे या फिर यह मामला भी अन्य सरकारी घोटालों की तरह धूल चाटता रहेगा?

Author: Suryodaya Samachar
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