Mahakumbh 2025 :- कुंभ मेले का आयोजन भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं से जुड़ा है। यह पर्व चार स्थानों – हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक – पर 12 वर्षों के अंतराल में मनाया जाता है। इसका आरंभ समुद्र मंथन की एक पौराणिक कथा से होता है, जो देवताओं और असुरों के बीच हुआ था।
कुंभ की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन हुआ। मंथन से अमृत का कलश (कुंभ) निकला, लेकिन इसके वितरण को लेकर विवाद हुआ। चंद्रमा ने देवताओं को सलाह दी कि अमृत को असुरों से बचाने के लिए उसे स्वर्ग ले जाया जाए।
चंद्रमा की गलती:
अमृत कलश को लेकर जब देवता भाग रहे थे, चंद्रमा ने अमृत कलश की रक्षा के लिए अपनी चपलता का प्रदर्शन किया। लेकिन इस प्रयास में वह असुरों के क्रोध का शिकार हो गया। असुरों ने चंद्रमा को श्राप दिया कि उसका आकार घटता-बढ़ता रहेगा। तभी से चंद्रमा के आकार का घटना-बढ़ना प्रारंभ हुआ।
देवताओं और असुरों के बीच 12 दिनों (पृथ्वी के 12 वर्ष) तक अमृत कलश के लिए संघर्ष चला। इस दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें चार स्थानों – हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक – पर गिरीं। इन स्थानों को पवित्र मानते हुए यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है।
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कुंभ का महत्व
- आध्यात्मिक शुद्धि: कुंभ में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है और आत्मा शुद्ध होती है।
- धर्म और संस्कृति का संगम: यह पर्व देश-विदेश के साधु-संतों, आचार्यों और श्रद्धालुओं को एक मंच पर लाता है।
- खगोलशास्त्रीय महत्व: कुंभ मेला तब आयोजित होता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की विशेष स्थिति होती है, जो ज्योतिषीय दृष्टि से शुभ मानी जाती है।
इस तरह चंद्रमा की गलती और समुद्र मंथन से जुड़े प्रसंग से कुंभ मेले की शुरुआत हुई, जो आज विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन बन चुका है।
कुंभ मेले का धार्मिक और सामाजिक महत्व
1. मोक्ष का मार्ग:
मान्यता है कि कुंभ के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह आत्मा को पवित्र करने और जीवन के चक्र से मुक्त होने का मार्ग माना गया है।
2. अद्वितीय साधु-संतों का संगम:
कुंभ मेले के दौरान देशभर के साधु-संत, तपस्वी, अघोरी, नागा साधु, और महामंडलेश्वर एकत्र होते हैं। इनकी उपस्थिति भक्तों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन और ज्ञान प्रदान करती है।
3. समाजिक सौहार्द और एकता:
कुंभ मेला एक ऐसा मंच है, जहां विभिन्न भाषाओं, जातियों, और क्षेत्रों के लोग एकजुट होकर धर्म और संस्कृति का जश्न मनाते हैं। यह सामाजिक समरसता का प्रतीक है।
कुंभ का ज्योतिषीय महत्व
कुंभ मेला तब आयोजित होता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रहों की स्थिति विशेष होती है। ये खगोलीय घटनाएं ज्योतिष के अनुसार अत्यंत शुभ मानी जाती हैं। उदाहरण के लिए:
- प्रयागराज: जब बृहस्पति मेष राशि में और सूर्य मकर राशि में होता है।
- हरिद्वार: जब बृहस्पति कुंभ राशि और सूर्य मेष राशि में होता है।
- उज्जैन: जब बृहस्पति सिंह राशि में होता है।
- नासिक: जब बृहस्पति और सूर्य सिंह राशि में होते हैं।
इन खगोलीय स्थितियों में नदियों का जल अमृत के समान पवित्र माना जाता है।
कुंभ के दौरान विशेष आयोजन
1. शाही स्नान:
कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण है नागा साधुओं और अन्य अखाड़ों द्वारा किया जाने वाला शाही स्नान। यह स्नान एक शुभ मुहूर्त में पवित्र नदियों में किया जाता है और इसे अत्यधिक पुण्यदायक माना जाता है।
2. धर्मसभा और प्रवचन:
कुंभ के दौरान विद्वान आचार्य और संत महात्मा प्रवचन देते हैं। यह धर्म और आध्यात्म से जुड़े गूढ़ रहस्यों को समझने का एक अवसर होता है।
3. भंडारे और सेवा कार्य:
कुंभ मेला सेवा और भक्ति का बड़ा मंच है। लाखों भक्तों के लिए निशुल्क भोजन, चिकित्सा और आश्रय की व्यवस्था की जाती है।
कुंभ मेले का वैश्विक प्रभाव
कुंभ मेला आज केवल भारत तक सीमित नहीं है। इसे संयुक्त राष्ट्र ने भी “मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर” के रूप में मान्यता दी है। यह आयोजन भारतीय संस्कृति की शक्ति और एकता को विश्व पटल पर दर्शाता है।
कुंभ मेला न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह भारतीय परंपरा, संस्कृति और आध्यात्मिकता का जीवंत उदाहरण है। चंद्रमा की गलती से शुरू हुई यह यात्रा आज करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था, मोक्ष और समर्पण का प्रतीक बन चुकी है। कुंभ केवल एक मेला नहीं, बल्कि मानवता के आत्मिक उत्थान का उत्सव है।
Author: Suryodaya Samachar
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