पितृपक्ष : वाराणसी पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान का पक्ष 19 सितंबर से आरंभ होगा, लेकिन प्रतिपदा का श्राद्ध 18 सितंबर को संपन्न होगा।
उदया तिथि नहीं मिलने के कारण द्वितीया तिथि की हानि भी हो रही है। महालया की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा से होगी और अश्विन अमावस्या तक श्राद्ध कर्म किए जाएंगे बीएचयू के ज्योतिष विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय ने बताया कि पितृपक्ष अश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा की शुरुआत तो 19 सितंबर से हो रही है लेकिन पितृपक्ष के प्रतिपदा का श्राद्ध 18 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा में किया जाएगा।
कब है शुभ समय ?
17 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा दिन में 11 बजे से लगेगी और 18 सितंबर को सुबह आठ बजे तक रहेगी। पूर्णिमा का व्रत 17 को रखा जाएगा लेकिन स्नान-दान 18 सितंबर को होंगे पूर्णिमा के बाद मध्याह्नव्यापिनी महालया शुरू हो जाएगी और इसके साथ ही पितृपक्ष के प्रतिपदा का श्राद्ध 18 सितंबर को ही किया जाएगा।19 सितंबर को प्रतिपदा सुबह 6:17 बजे तक रहेगी। उदया तिथि नहीं मिलने के कारण द्वितीय की हानि हो रही है। मध्याह्नव्यापिनी श्राद्ध होने के कारण द्वितीया का श्राद्ध 19 सितंबर को होगा।
चतुर्दशी तिथि पर केवल शस्त्र, विष, दुर्घटनादि (अपमृत्यु) से मरने वालों का श्राद्ध होता है चतुर्दशी तिथि में सामान्य मृत्यु वालों का श्राद्ध अमावस्या तिथि में करने का शास्त्र विधान है पितरों का श्राद्ध श्रद्धा भाव से आश्विन कृष्ण पक्ष में किया जाता है। इससे स्वास्थ्य, समृद्धि, आयु, सुख- शांति, वंशवृद्धि और उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। ध्यान रहे कि श्राद्ध के सभी कर्म अपराह्न काल यानी मध्याह्ननव्यापिनी तिथि में किए जाते हैं। उत्तर और दक्षिणी भारतीय लोगों के श्राद्ध की विधि समान और समान दिन ही होती है।
Janmashtami 2024 : जन्माष्टमी के दिन क्या खाएं और क्या न खाएं…